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हिमाचल प्रदेश के चुनावी इतिहास में ये पहला मौका है, जब विधानसभा में कोई भी निर्दलीय विधायक नहीं हैं। तीन विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में से दो पर जीत के साथ कांग्रेस की ताकत बढ़कर 40 हो गई है। ऐसा भी पहली बार हुआ है कि पति-पत्नी यानी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और कमलेश ठाकुर सदन के सदस्य होंगे। देहरा विधानसभा सीट से कमलेश ठाकुर की जीत से राज्य में महिला विधायकों की संख्या दो हो गई है।
साल 2022 के विधानसभा चुनाव में तीन निर्दलीय उम्मीदवारों होशियार सिंह (देहरा), आशीष शर्मा (हमीरपुर) और के एल ठाकुर (नालागढ़) चुने गए थे, लेकिन 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार हर्ष महाजन को वोट देने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
क्यों कराना पड़ा उपचुनाव?
निर्दलीय विधायकों ने 22 मार्च को इस्तीफा दे दिया था और अगले दिन बीजेपी में शामिल हो गए थे। विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने तीन जून को उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया था और 10 जुलाई को उनकी खाली सीट पर उपचुनाव हुए।
तीनों पूर्व निर्दलीय विधायकों को बीजेपी से टिकट मिला था, लेकिन उनमें से दो उम्मीदवार कांग्रेस से हार गए, जबकि बीजेपी ने एक सीट जीती।
हिमाचल में निर्दलीय विधायकों की अहम भूमिका रही
राज्य की चुनावी राजनीति में निर्दलीय विधायकों की अहम भूमिका रही है। साल 1967 में 16 निर्दलीय निर्वाचित हुए, जबकि 1957 में 12, 1952 में आठ, 1972 और 1993 में सात-सात, 1977, 1982 और 2003 में छह-छह, 2012 में पांच, 1962, 2007 और 2022 में तीन-तीन, 1985 और 2017 में दो-दो तथा 1990 और 1998 में एक-एक निर्दलीय उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे।
साल 1998 में रोमेश धवाला अकेले निर्दलीय विधायक थे, जिनकी सरकार गठन में अहम भूमिका रही। धवाला के समर्थन से कांग्रेस के पास 32 विधायक थे, वहीं BJP-HVC (हिमाचल विकास कांग्रेस) गठबंधन के पास भी 32 सदस्य थे, जिससे विधानसभा की प्रभावी संख्या 64 हो गई थी। बर्फबारी से प्रभावित तीन जनजातीय क्षेत्रों में जून में चुनाव होने थे, जबकि एक और सीट पर बीजेपी विधायक वरिंदर कुमार की शपथ लेने से पहले ही मृत्यु हो गई, जिसके कारण उपचुनाव की जरूरत पड़ी।
राज्यपाल वी.एस. रमादेवी ने सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने के नाते कांग्रेस के वीरभद्र सिंह को छह मार्च 1998 को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया और धवाला को कैबिनेट मंत्री बनाया गया।
एक निर्दलीय ने बदल दिया पूरा खेल
हालांकि, वीरभद्र सिंह ने 12 मार्च को सदन में शक्ति परीक्षण का सामना किए बिना ही अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी और राज्यपाल ने विधानसभा को निलंबित स्थिति में रखा।
इस बीच, धवाला ने BJP-HVC गठबंधन को समर्थन दे दिया और राज्यपाल ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए कहा और प्रेम कुमार धूमल ने 24 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और धवाला को मंत्रिमंडल में मंत्री के रूप में शामिल किया।
उसी साल बाद में, BJP-HVC ने उपचुनाव में सभी चार सीट जीत लीं और सत्तारूढ़ गठबंधन की ताकत 36 हो गई और इस तरह सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर सकी।
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