Budget 2024: केंद्र के कुल टैक्स कलेक्शन में सेस का अनुपात कम करने से राज्यों को मिलेंगे ज्यादा पैसे

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यूनियन बजट में खर्च होने वाले हर 100 रुपये में से करीब 45-46 रुपये किसी न किसी रूप में राज्यों के पास जाते हैं। इंडिया में सरकार का ढांचा ऐसा है, जिसमें अधिकार और जिम्मेदारियां केंद्र और राज्यों के बीच बंटी हुई हैं। दुनिया के कई देशों में सरकार के कुल खर्च में राज्यों की हिस्सेदारी करीब 30 फीसदी है, जबकि इंडिया में यह 60 फीसदी है। लेकिन, जब बात पैसे जुटाने की होती है तो यह अनुपात उल्टा हो जाता है। केंद्र सरकार करीब 63 फीसदी पैसे जुटाती है, क्योंकि इसका डायरेक्ट टैक्स पर पूरा नियंत्रण होता है।

RBI के पूर्व गवर्नर वाईवी रेड्डी की अगुवाई वाले 14वें वित्त आयोग ने राज्यों को ट्रांसफर होने वाले पैसे को काफी बढ़ाने की सिफारिश की थी। आयोग ने कहा था कि टैक्स के ‘बांटे जाने योग्य संसाधन’ (divisibel Pool) का 42 फीसदी राज्यों को ट्रांसफर किया जाना चाहिए। इसे केंद्र सरकार ने 2015-2020 की अवधि के लिए स्वीकार कर लिया था। अगले वित्त आयोग ने भी ट्रांसफर के लिए इसी तरीके का इस्तेमाल करने को कहा था।

बजट डॉक्युमेंट्स से पता चलता है कि फीसदी में देखने पर वास्तविक ट्रांसफर में कमी का ट्रेंड है। 2018-19 में केंद्र के कुल टैक्स रेवेन्यू का 37 फीसदी राज्यों को ट्रांसफर होता था। यह 2022-23 में घटकर 31 फीसदी पर आ गया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि राज्यों के वित्त मंत्रियों के लिए खर्च के लिए पैसे का आवंटन करना मुश्किल हुआ है। इसकी वजह यह है कि भले ही 2015 से केंद्र से राज्यों को ट्रांसफर होने वाला पैसा 2023 में दोगुना से ज्यादा यानी 18.64 लाख करोड़ हो गया है, लेकिन बगैर शर्त फीसदी में ट्रांसफर होने वाला अमाउंट 60 फीसदी से घटकर 51 फीसदी पर आ गया है।

राज्यों को फिस्कल स्पेस घटने की वजह केंद्र की तरफ से कलेक्ट किए जाने वाले टैक्स में सेस और सरचार्ज का बढ़ता अनुपात है। कानूनी रूप से केंद्र सरकार सेस और सरचार्ज के पैसे को ट्रांसफर नहीं करती है। इसका मतलब यह है कि यह पैसा ‘डिवाइजेबल पूल’ से बाहर होता है। मार्च 2023 में लोकसभा में एक सवाल के जवाब जवाब में केंद्र सरकार ने जो डेटा पेश किए, उसके मुताबिक 2019-20 के दौरान केंद्र के ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू में सेस और सरचार्ज की हिस्सेदारी करीब 11-14 फीसदी थी। इसका मतलब यह है कि केंद्र को कलेक्ट किए गए हर 100 रुपये में से 90 रुपये से कम का बंटवारा करना पड़ा।

एक के बाद एक दो वित्त आयोग ने राज्यों को बगैर शर्त ज्यादा ट्रांसफर करने की सिफारिश की। इसके पीछे एक बड़ी आर्थिक वजह है। उदाहरण के लिए महाराष्ट्र और मणिपुर की प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं। इसलिए एक सीमा के बाद सभी राज्यों के लिए स्टैंडर्डाइज्ड सेंट्रल स्कीम में ज्यादा पैसे देने का ज्यादा फायदा नहीं दिखा है। केंद्र सरकार के पूंजीगत खर्च के हिसाब से अपने निवेश के बारे में फैसला राज्य खुद ले सकते हैं।

अगले बजट में फाइनेंस कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की कोशिश होनी चाहिए। सेस और सरचार्ज की कैटेगरी में आने वाले टैक्सेज को वापस लिया जाना चाहिए। केंद्र सरकार के ग्रॉस टैक्स रेवेन्यू में डिवाइजेबल पूल का अनुपात बढ़ना चाहिए।

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